Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म | नात्यंत-परिणामातिरेकतः // दयोपशमतश्चैव / सदाचरणकर्मणः // 5 // तस्याः कुबेरदत्ताया। विशिष्टगुणहेतुकं // अवधिज्ञानमुत्पन्नं / रूपिवस्तुप्रकाशकं // 6 // तेन प्रलोकयंती च / भारतं क्षेत्रमंजसा // क्रमेणोपयुजे सर्व / मथुरा नगरींप्रति // 7 // ददर्श भ्रातरं तत्र / कलत्रीकृतमातरं 375 // बालवत्सं तयोरेव / पुत्रं चाचिंतयत्ततः // 7 // अहो मुरौद्रमझानं / महाउःखौघकारणं // महाविमंबनाहेतु-महामूलं महापदां // 5 // अज्ञानोपहता जीवा / न बुध्यते हिताहितं / / हेयो. पादेयतां चैव / धर्माधर्मस्वरूपतां // 10 // दयाभदयादिकं वस्तु / पेयापेयादिकं तथा // कृत्याकृत्यविजागं च / गम्यागम्यं शुजाशुन्नं // 11 // अज्ञानेन हि जीवानां / दीर्घः संसारसागरः // दीर्घा कर्मस्थितिश्चैव / दीर्घा दुःखपरंपरा // 12 // अज्ञानादेव कुर्वति / जीवाः कर्मातिनिघणं / / गोहत्यां नृणहत्यां च / स्त्रीहत्यां ब्रह्मघातनं / / 13 / / जल्पंति च मृषावादं / परद्रव्यं हरति च // परदारांश्च सेवंते / लुभ्यंति च परीग्रहे // 14 // जदयंति च मांसानि / मद्यानि च पित्यलं // झुंजते च दिवारात्रौ / पशुवन्नियम विना / / 15 / / तस्मादशानमेवेह / सर्वानर्थप्रवर्तकं / शिष्टसं. | मतनिःशेष-व्यवहारस्य बाधकं / / 16 // एवं विचिंत्य सा चित्ते-नुझाप्य गणिनी तथा // क्र. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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