Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्मः // 27 // अतोऽनयोगहाणैकं / यत्तव प्रतिजासते // गृह्णाम्यहं द्वितीयं तु / श्रेष्टिन् यत्त्वं विमुंचः / सि // 27 // ततो महेश्वरः प्राह / बालिका मे अवविति / / बालकं वं गृहाणेम-मेवमस्त्विति / सोऽवदत् // 60 // तल्लानहृष्टसंतुष्टौ / लात्वा तर्मिजयुग्मकं // तदालोकनसन्निष्टौ / गतौ गेहे 351 निजे निजे // 61 // दारको यदादत्तेन / खनार्या यै समर्पितः // अयं पुत्रस्तवेत्युक्त्वा / यत्नतः पाव्यतामिति // 6 // महेश्वरोऽपि सस्नेह-मर्पयामास दारिकां // गेहिन्यास्तव पुत्रीयं / यत्नेन प्रतिपालय / / 63 // अथेदं वर्धते तत्र / धात्रीपंचकलालितं // दीरपानाभिषेकांक-धारणक्रीमनादिन्निः // 64 // सनोज्यैःह्यपेयाद्यै–नानालंकरणादिभिः // तस्यैवं लाब्यमानस्य / वर्षाण्य. टौ क्रमाद्ययुः // 65 // ततः शब्दादिविद्यानां / ग्रहणाय युगं ततः / पुष्पालंकारवस्त्राद्यैः / प्रवि. ऋषितविग्रहं / / 66 // श्रेष्टिभ्यां कृतपूजस्य / वरवस्त्रफलादिन्निः // एकस्यैव च सानंद-मुपाध्या. यस्य ढौकितं // 67 // युग्मं // एकत्रैव प्रयत्नेन / गृह्णतः सकलाः कलाः // परां कोटिं समारूढा / तस्यं प्रीतिः परस्परं // 6 // एवं स्नेहानुरक्तस्य / पठतः क्रीमतस्तथा // क्रमेणोपात्तविद्यस्य / सं. | जातं नवयौवनं / / 65 // P.P.AC, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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