Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 384
________________ धर्मः / // 5 // प्रमादमदिरामूढो / विचेता नष्टसमतिः // कः प्राणी पतितो नात / व्यूढो विषयवीचिनिः | // 6 // त्रिनिर्विशेषकं // नानायोनिसमाकीर्णे / जीवः कर्मविनिर्मितां // त्रैलोक्यरंगे नटव-छ. तेऽनेकस्वरूपतां // 7 // कचिनारकनावेन / कचित्तिर्यग्योनिकः // कचिच्च जायते मर्यो / दिवि देवः कदाचन // 7 // कचिद्राजा कचिउंकः / कचिदुःखी कचित्सुखी॥ कचिनिंद्यः कचिदंद्यः / कचिद् ज्ञानी कचिज्जमः // // सुरूपः सुजगः क्वापि / कुरूपो दुर्नगः कचित् // कचिद् देष्यः प्रियः कापि / जीवो जगति जायते // 10 // प्रियाप्रयोजने केचि केचिच्चापत्यचिंतया // नी. रोगताकृते केचित् / केचिघनजिगीषया // 11 // खिद्यते सर्वदा जीवा / असंपूर्णमनोरथाः // रा: गद्वेषग्रहास्ता / विवदंतः परस्परं // 12 // शुक्रशोणितसंढते / सप्तधातुमलाश्रये // खड्मात्रप्राव ते पुंसां / काये का रमणीयता // 13 // रमणी या रमणीया। निगद्यते काममोहितमनोनिः / तस्या अपि निस्सारं / शरीरकं पूतिमलगंधि // 14 // संसारासारता येषा-मेषा नो मनसि स्थि. ता / / ब्रमति ते सदा जस्ता / नवारण्ये मृगा यथा // 15 // जनयित्री जनी यत्र / जनी च ज. निका भवेत् // कुबेरदत्तया दत्तो। दृष्टांतोऽत्र जिनागमे // 16 // संसारासारतामेनां / विभाव्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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