Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ 371 धर्मः / सदाकालं / वत्से मदनमंजरी // 42 // इत्युक्ते दंपती पोते / समारूढौ जनाकुले // पोतोऽपि गं. तुमारब्धो / गरुत्मानिव वेगतः // 43 // स्तोकैरेव दिनैस्तूर्ण / पूर्वपुण्यानुजावतः // प्राप्तो जल निधेस्तीरें / पुरे तारापुरानिधे // 45 // नाना-याणकाकीर्ण / श्रुत्वा तं पोतमागतं // आनंदितो नराधीशो / नागरीको जनस्तथा // 45 // ततस्तीरे धृतः पोतो। लंबिता नंगरा पुतं // ज. त्तीर्णश्च ततः पोता-त्ताराचंद्रो जटान्वितः // 6 // ततः पणांगनावंदैः / सानं दैः कृतमंगलः // अनेकैदिबू दैश्च / स्तूयमानगुणोत्करः // 4 // मानयन्मान्यलोकौघं / नमनीयान्नमन्नसौ // सं. जापयंश्च संजाध्यान् / दानं ददत्तदर्थिनां // 4 // संप्राप्तो निजगेहं च / वघ्बंधुरतोरणं / निजस्य बंधुवर्गस्य / सोत्कंगे मिमिले स च // 40 // त्रिनिर्विशेषकं // पुष्पतांबूलवस्त्राद्यैः / सन्मा: नितो निजो जनः // गतश्च निजके स्थाने / ताराचंडविसर्जितः // 50 // कृत्वा स्नानादिकं कृत्यं / ताराचंडोऽपि सत्वरं // गृहीत्वा प्राभृतं प्राज्यं / जगाम नृपमंदिरं // 51 // दृष्टो राजा ततस्तस्मै / ढौकितं प्राभृतं तथा // प्रोक्तश्च निजवृत्तांतः / स्वपोतागमनादिकः // 55 // उच्चुक्तश्च कृतो राज्ञा / ततो वेलाकुले गतः॥ उत्तारितं ततो जांमं / नीतं च निजमंदिरे // 13 // सर्वस्यापि Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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