Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 381
________________ धर्म | ताराचंडोऽप्युवाचेदं / मायामय निशामय // यच्च लोकान्मयाश्रावि / वचो विस्मयकारकं // 31 // धीका रत्नसारनरेंद्रस्य / निष्पुत्रस्य सुतोऽजनि // तेन तुष्टो जनः सर्व-स्त्वं तुष्टः किं न कथ्यतां / 3 / स प्राह सुतरां तुष्ट-स्तर्हि याहि निजे गृहे // न ते किंचिच्च दातव्यं / परितोषो हि वेतनं // 300 // 33 // ताराचंडो नरेंद्रस्य / प्रणम्य पदपंकजं // पाशत्रयविनिर्मुक्तो / व्यवहारपरोऽजनि // 34 // स्वटपेनापि च कालेन / विक्रीतं वणिजा निजं // जांमं च रिलाजोऽपि / लब्धः पुण्यानुनाव| तः // 35 // पृष्टो राजा भृतो पोतः / प्रतिनांडेन सर्वतः / गत्वा मकरदंष्ट्रापि.। पृष्टा गमनहेतवे // 36 // रुष्शब्दं रुदंती सा / लोचने गलदश्रुणी // बिभ्रती वक्तुमारब्धा / यथेयं मम पुत्रिका // 37 // प्राणेभ्योऽपि प्रिया वत्स / दत्ता मदनमंजरी // आकृष्टयुव गौघा / ह्याम्रजोखि मंजरी // // 30 // जण भवता जाव्यं / जडिका सा विशेषतः // प्रतिकूलेऽनुकूला ये / स्वल्पास्ते सऊ. ना जनाः // 30 // मयि स्नेहो न मोक्तव्य-स्ताराचंद्र सदा त्वया // यत्प्रतिपन्न निर्वाहं / कुर्वते विरला जनाः // 40 // उक्तं च-बहुवलहेवि कय–विप्पिएवि अन्नबबहरागेवि // जंमि मणो नियत्त / सो नेहो परिचड सेसो // 41 // ताराचंड चिरं जीव / यावचंद्रदिवाकरौ // स्मर्तव्याडं P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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