Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म- खलोकस्य / दातव्यं च ददौ मुदा // ततोऽसौ बुलुजे जोगान् / प्रमोदनरनिर्नरः // 24 // सार्ध निजकनार्यान्यां / पूर्णाखिलमनोरथः // धर्मध्यानरतो नित्यं / संतोषैकमनाः खलु // 25 // वि. झायेदमसंतोषः / सर्वदा त्यज्यतां जनाः // विधीयतां च संतोषः / सर्वकल्याणकारकः // 16 // इति संतोषाधिकारे ताराचंद्राभिषश्रेष्टिकथा परिसमाप्ता. // इति पंचमोऽधिकारः समाप्तः॥ . अथ संसाराधिकारः षष्टः प्रारभ्यते, अस्य चायमनिसंबंधः-पूर्व संतोषवतां प्रशंसा कृता, सं. तोषत्वं च संसारासारतानावनात एव जायते, इत्यतः संसारासारतात्र प्रोच्यते, इत्यनेन संबंधोऽयं व्याख्यायते, तत्रैते श्लोकाः. // मूलम् // यौवनं जरयाघातं / रूपं रोगैरनिपुतं // जीवितं यमराजस्य / वशवर्ति क सारता // 1 // पर्वता अपि शीर्यते / शुष्यंति च जलाशयाः // यत्र ततान्यवस्तूनां / सारता कुत्र कल्प्यते // // एवं सांसारिकाः सर्वे / नावा वैरस्य हेतवः // रंनास्तंभोपमाः प्रायो। निस्साराः क्षणनंगुराः // 3 // जीवेनानंतशः क्षुणे / चतुर्गतिगतागतैः // तथाप्यलब्धपर्यते / ह्यनादौ नव. सागरे // 4 // अलब्धांतःपरिस्पंदे / दुःखश्वापदसंकुले ! / व्याधिजन्मजरामृत्यु-वाखिारजयंकरे। PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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