Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 379
________________ धर्म- कृतः // यद्यस्यापि निषेधोऽस्ति / वणिग्धर्मो गतस्तदा // 7 // राजाह संगतं ब्रूते / श्रेष्टी न्याया- / टीका नुग वचः / / नुगं वचः // श्रेष्टिना लभ्यमेवेदं / यद्ययं मन्यते वणिक् // 7 // ताराचंद्रस्ततो ब्रूते / सत्यं सर्व मिदं नृप // गृह्णात्वयं निजं लन्यं / युष्माकं चरणाग्रतः // 10 // ददातु प्रस्थकं मह्यं / नव्यानां 370 मशकास्थनां // उत्तरानिलपूतानां / खंडितानामुदृखले // 11 // ततो दातुमशक्तेन / जजल्पे श्रे. टिना वचः // विजितोऽहं महाभाग / जयस्त्वयि व्यवस्थितः // 12 // राजाध्यदं मया मुक्तः / स. ना सर्वात सादिणी // ततो मंत्री समाहूत-स्तदा सोऽपि समागतः // 13 // विनम्य च महीनाथं / निषसादोचितासने // जणितो जूमिपालेन / मंत्रिन मंत्रो न सुंदरः // 14 // विवादः केन कार्येण / संजातो वणिजा सह // साधयागतमात्रेण / किंचानेन विनाशितं // 15 // व्यवहारनि. रोधोऽपि / सहसैव कथं कृतः // कथितं किं न नः कार्य / स्वबंद व लक्ष्यसे // 16 // मंत्र्याह श्रूयतां देव / सावधानेन चेतसा // एकदाहं हताशेन / विधिनातं विमंषितः // 17 // श्तो नी तः समाकृष्य / पुरे तारापुरेऽन्यदा // अस्य पित्रा समं तत्र / जातं मे सख्यमुत्तमं // 10 // . | न्यदा याचितो लदो / दत्तस्तेनापि सोंजसा // तस्मै ग्रहणके दत्तं / दक्षिणादि निजं मया / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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