Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 377
________________ धर्म | तं | पृष्टो मकरदंष्ट्रया // तेनापि कथितः सर्यो / यथा दृष्टो यथा श्रुतः // 5 // स तया भणि म तो जद्र / तथा कार्य त्वयाधुना // यथा श्रुतं द्विजस्यांते / जयो येन प्रजायते // 6 // एवभु. | क्त्वा गता वेश्या / पुरतो राजमंदिरे // दृष्टा पृष्टा च भूपेन / किमागमनकारणं / / 7 / / तयोक्तं 376 | देव कार्येण / समयश्चेनिवेद्यते // अनुझाता नरेंण / वेश्या वक्तुं प्रचक्रमे // G ! हाहा क ष्टं महीनाथ / महत्खेदस्य कारणं // कुतोऽपि वणिजः कोऽपि / पोतेनात्र समागतः // 7 // श्रे | ष्टिना मंत्रिणा चैवं / तथा चर्मकरेण च // विनापि कारणं नाथ / निर्नाथ व खेद्यते // 70 // हीपस्य नगरस्यास्य / तवापि च महीपते // अकीर्तिमहती तेन / स्वामिन विज्ञप्यसे मया // 1 // | श्रुत्वेदं जाजाणि / रेरे नगररदक // गत्वा तं वणिज लात्वा / शीघमाग मत्पुरः // ए॥ सोऽपि शोधं समादाय / संप्राप्तो नृपतेः पुरः // पुण्यानुजावतस्तस्य / सानुकूलो नृपोऽजनि / / 3 / / | नत्वा नृपं निषामोऽसौ / सानंदं वीदय नुजा // पृष्टस्त्वं कुत्र वास्तव्यः / किमानीतं त्वया वंद / / // एU // तेनापि कथितं सर्व / यथावृत्तं महीजे // ततः श्रेष्टी समाहतो / ऋमिपालेन सत्वरं / / || 55 // श्रासातस्तं तथा दृष्ट्वा / जातः साशंकमानसः // विनम्य च महीनाथं / निषमश्वोचिता. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasun M.S.

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