Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म जानुः / शिरोनमनपूर्वकं // 73 // उपाध्यायोऽपि तेनैव / क्रमेणानेन वंदितः // विप्रः प्रोवाच जो जड़ / किमागमनकारणं // 14 // युग्मं / / सोऽवम् मयि कृपां कृत्वा / श्रूयतां कथयाम्यहं // मया स्वबुछियोगेन / वचनबलनात्तथा / / 75 // ताराचंडाधिः श्रेष्टी / बलितः सांप्रतं किल / तत्पश्नार्थमहं नूनं / संप्राप्तो युष्मदंतिके / / 16 // युग्मं // सुप्रसादं मनः कृत्वा / स्वामिन होरां नि. रूपय // विजाव्य नाणतं तेन / रेरे होरा न सुंदरा / / 7 / / यदि वदात्यसौ श्रेष्टी / रत्नसारस्य नृपतेः // अपुत्रस्य सुतो जात-स्तेन तुष्टो जनोऽखिलः / / 30 | वं तु तुष्टोऽथवा नेति / चर्मकार निवेदय // यदि ब्रूषे न संतुष्ट-स्ततो ऋमिपतेनयं // 15 // संतुष्टश्चेनं नैव / लन्यं सं. तोष एव हि // तत् श्रुत्वा चर्मकारोऽपि / निरानंदो गतो गृहे / / 70 // विमस्य निष्टुरैक्यैिनितो मानसे यतः // वचसोऽनुकूलातुष्टि-रसत्यादपि जायते // 71 // विवाहमंगलान्यत्र / प्र. तीतानि निदर्शनं // असत्यान्यपि लोकानां / जायते प्रीतिहेतवे // 2 // अथोजतो दिनाधीशस्ताम्रचूमैर्ववासिरे // नहाय खक्रियाः कर्तु / समारब्धो जनस्ततः / / 73 // ताराचंडोऽपि वेगेन / | निर्गतो रविमंदिरात् // गतो वेश्यागृहे तोषात् / किंचिदुत्फुल्लालोचनः // 4 // ततोऽसौ रानिवृत्तां P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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