Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 378
________________ धर्मः सने // ए६ // रोषारुणितनेत्रेण / साक्षेपं धरणीभृता // नणितो चण्यसे किंचि-सोननंदे निः | - शामय // ए // हे श्रेष्टिन श्रेष्टकर्माणि / कुर्वन श्रेष्टी निगद्यते // शेषस्तु नामतः श्रेष्टी / नण्य ते न तु कर्मतः // एG || किमराजमिदं स्थानं / न्यायो वात्र न लभ्यते // येन सर्वाणि कार्या३१७ णि क्रियते स्वेच्या त्वया // एवं // विदेशिवणिजा सार्धं / विवादः केन हेतुना // किं कुकर्म कृतं तेन / किंचानेन विनाशित // 100 // श्रेष्ट्याह श्रूयतां देवं / सावधानेन चेतसा // याति. थेयों क्रियां कर्तु-मस्यावासे गता वयं / / 1 // संलापपूर्वकं पृष्टा / वयमेतेन सांजसं // किमस्ति नास्ति वा मित्र / नांडानामत्र निर्गमः // 2 // मयोक्तं दीर्घकालेन / ततो विषादिचेतसा // श्यामितास्येन संलप्स-मनेनेदं मुहुर्मुहुः // 3 // शीघ्रं निर्गममिलामो / न चिरं स्थास्त्रवो वयं / / म याप्यागंतचित्तेन / जणितो घद्र सांप्रतं // 4 // अस्त्युपायः परं मित्र / गवते यदि रोचते // यः किंचिद्रोचते तुन्यं / प्रतिजा तत्प्रस्थकं // 5 // मृत्वा शीबूं प्रयत्नामि / ततस्ते मांडनिर्गमः / / प्रतिपन्नमनेनापि / सत्यंकारश्च ढौकितः // 6 // युग्मं // विधृताः सादिणो लोका। जांमं दृष्ट्या हतं कृतं // संव्यवहारमुति / निषिका मांडविक्रये // 7 // न चौर्य उलनं नैव / व्यवहारो मया P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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