Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ धर्म / ट्टिन्या तस्य हृष्टया // 20 // यथैषा मे प्रिया पुत्री / नाना मदनमंजरी // पुरुषदेषिणी त्रुत्वा / / | बव त्वयि तोषिणी // 51 // तदिमां भवते दत्वा / संजाताहं निराकुला // सुस्थितं जायते चे. तो / योग्ययोगेन देहिनां // 5 // जक्ता च सा यथा वत्से / त्वया भाव्यं विनीतया // विनयो 373 हि कारणं येन / सर्वदा सर्वसंपदां // 53 // एवं च वसतस्तत्र / वव्रजु स्विासराः // स्वर्नावस्ये. व सौधर्मे / सततं हृष्टचेतसः॥ 24 // अन्यदा च तया पृष्टः / कस्त्वं कस्मादिहागतः // ततस्तस्यै ववृत्तांतः / सर्वस्तेन निवेदितः // 55 // तयोक्तं विषदेषा ते / परं खेदो न संगतः // श्रापदः संपदश्चैव / समीपस्थाः शरीरिणां // 16 // एवमुक्त्वा गता तूर्ण / कुट्टिनी नानुमंदिरे // ततस्त्रि लोचनं नटुं / प्रणम्योवाच सा यथा // 57 // समयोऽस्ति न वा विप्र / पृष्टव्यं मम किंचन // स प्राह समयो दत्त-श्चर्मकृतश्रेष्टिमंत्रिणां // 17 // एवं विझाय सा सर्व / कुट्टिनी खगृहे गता // जामाता जणितो वत्स / स्वल्पं हि व्यसनं तव // 27 // यामिन्याः प्रथमे यामे / व्यतीते रवि मंदिरे // बन्नीच्य तिष्ट त्वं / शृण्वन् श्रेष्ट्यादिजटिपतं // 60 // तेनापि च कृतं सर्व / यथादि. | ष्टं तथैव तत् // ततः श्रेष्टी समायातो। यामिन्याः प्रहरे गते // 61 // गणानाणि कर्णाते। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404