Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ धर्मः | जाता जातिस्मराः सर्वे / सर्वे संविनमानसाः // 60 // कालेन केवलझानं / सर्वेषामुदपद्यत // त. | तश्च दीकर्माशा / ययुः सर्वे शिवालयं // 61 / / इति कपिलाख्यानकं समाप्तं // इदानीं पिंगलाख्यानमुच्यते अव्यक्तलिंगधारीह / नरः संतोषसुंदरः // केनापि वणिजा पृष्टः / को गुरुस्ते निवेद्यतां // // 1 // पिंगला कुररः सर्पः / सारंगास्त्रस्तलोचनाः // षुकारकुमारी च / षडेते गुरवो मम // 2 // श्रुत्वेदं वणिजा प्रोक्तं / गुरुरेकः शरीरिणां / महत्कौतुकमेतच्च / गुरवः षट् कथं तव // 3 // सं. तोषसुंदरः प्राह / सावधानमनाः शृणु // एकस्यापि हि संजाता / गुरवः षट् यथा मम // 4 // नानावर्णसमाकीर्ण / नानासौधसमाकुलं / विशालशालसंयुक्तं / सुरसद्मविराजितं // 5 // का मिनीमंजुमंजीर-वरंजितहंसकं // समस्तमेदिनीपीठे / रम्यं रत्नपुरं पुरं // 6 // युग्मं // तत्रा नाममादाय / गतो वाणिज्यकर्मणे // वाणिज्यं कुर्वता दृष्टा / पिंगलाख्या विलासिनी // 7 // त. तो जातानुरागोऽहं / संवसामि तया सह // वाणिज्ये प्रतला बुद्धि-स्तस्यासक्तस्य मेऽजनि // | // 7 // अन्यदाहं गृहे तस्या / अर्धरात्रे समागतः // यावत्सा पिंगला सुप्ता / निश्चिंता सपरिबदा / PP.AC.Gunmainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404