Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धर्म | // तेन प्रोक्तमधीयेऽहं / सहिद्यामंब सांप्रतं // 13 // ततो यशाब्रवीदेवं / पुत्रवाक्येन रंजिता / / का नवंत पाठयिष्यति / नेहवास्तव्यपंमिताः // 14 // तवत्स गढ वेगेन / श्रावस्ती नगरी यतः // समस्ति तत्र सहिद्या-महासागरपारगः // 15 // मित्रं तव पितुर्विदा-निंऽदत्ताभिषः सुधीः / / | मित्रस्नेहेन सोऽवश्यं / जवंत पाठयिष्यति // 16 // श्रुत्वेदं वचनं मातुः / श्रावस्त्यां कपिलो गतः // उपाध्यायस्ततस्तेन / प्रणतोऽक्तियोगतः // 17 // निवेदितं यथा तात / विद्यार्थमहमागतः / // तेनोचे सुंदरं मऊ / विद्यायाः समुपार्जनं // 17 // विद्याहीना यतो लोके / मानवाः पशुनिः समाः // न शोभंते सन्जामध्ये / हंसौधे श्व वायसाः // 15 // तथा चोक्तं- विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रबन्नगुप्तं धनं / विद्या नोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः // विद्या बंधुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता / विद्या राजसु पूजिता न हि धनं विद्या विहीनः पशुः / / 20 // किं तेन जात जातेन / यो न विद्वान्न धार्मिकः // तया गवा हि किं कृ. त्यं / या न धेनुर्न गर्निणी // 21 // दाने यशसि शौर्य च / यस्य न प्रथितं यशः // विद्यायाम- | र्थलाने वा / मातुरुंचार एव सः // 12 // विद्यायाः साधनानीह / विद्यते मम मंदिरे // केलंव। . P.P.AC. Gunratnasuri-M.S Jun Gun Aaradhak Trust

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