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एस धम्मो सनंतनो
एवम्पि तहानुसये अनूहते निब्बत्तति दुक्खमिदं पुनःपुनं ।।२७८।।
यस्स छत्तिंसति सोता मनापस्सवना भुसा। वाहा वहन्ति दुद्दिढि संकप्पा रागनिस्सिता ।।२७९।।
सवन्ति सब्बधि सोता लता उब्भिज्ज तिट्ठति। तञ्च दिस्वा लतं जातं मूलं पञाय छिन्दथ।।२८०।।
कली... नन्हीं सी कल ही तो मौसम मनाया था नेह का गंध भरी देह का आज लाचार गयी छली एक कली... एक सुबह एक शाम इतनी-सी जिंदगी झरी पाखें सगी आंखें उदास रूप-जली एक कली.. धूल की अलगनी पर टंगे सपने अभी मटैले से सभी
बुझे-बुझे रंग उम्र ढली __ एक कली...
ऐसा ही जीवन है; अभी है, अभी नहीं; क्षणभंगुर है। इस क्षणभंगुरता को जिसने समझा, वही धर्म में प्रवेश करता है। इस क्षणभंगुरता को जिसने न समझा, वह भटकता रहता। कोल्हू के बैल जैसा जुता गोल-गोल घूमता रहता। इसी को बुद्ध ने कहा है-एस धम्मो सनंतनो।
जीवन क्षण-क्षण परिवर्तनशील है, इसे देख लेना परम नियम है। ऐसा हमें दिखायी नहीं पड़ता। आंख पर कोई पर्दा है, जो देखने नहीं देता। रोज देखते हैं चारों तरफ मौत को घटते, फिर भी यह बात मन में बैठती नहीं कि मैं भी मरूंगा। रोज