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वर्धमान-वड्ढमाण आदि। इसके लिए आचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृतयोनि', वाग्भट ने तज्ज' तथा भरत ने विभ्रष्ट' शब्द का प्रयोग किया है।
देशी शब्द सामान्यतया ग्राम्य या प्रान्तीय अर्थ का वाचक है । निरुक्तकार यास्क' तथा पाणिनि' ने देशी शब्द का प्रयोग प्रान्त अर्थ में किया है।
वात्स्यायन ने कामसूत्र, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस, बाण ने कादंबरी तथा धनञ्जय ने दशरूपक में नाना देशों में बोली जाने वाली भाषाओं को देशी भाषा कहा है। कामसूत्र, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि ग्रंथों में देशभाषा शब्द से देशी भाषा का अर्थ ग्रहण किया गया है । वैयाकरण चण्ड ने देशीभाषा के अर्थ में देशीप्रसिद्ध, भरत ने देशीमत तथा देशागत शब्द का प्रयोग किया है।
अनुयोगद्वार में शब्दों को पांच भागों में विभक्त किया गया है। उनमें नपातिक शब्दों को देशी के अन्तर्गत माना जा सकता है।
संस्कृत में तीन प्रकार की शब्द सम्पदा है - रूढ़, यौगिक और मिश्र । इनमें रूढ़ शब्द देशी के अन्तर्गत आते हैं ।
__ कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र ने देशीनाममाला में देशी शब्द को परिभाषित करते हए लिखा है--जो शब्द व्याकरण ग्रंथों में प्रकृति, प्रत्यय द्वारा सिद्ध नहीं हैं, व्याकरण से सिद्ध होने पर भी संस्कृत कोशो में प्रसिद्ध नहीं हैं तथा जो शब्द लक्षणा आदि शब्द-शक्तियों द्वारा दुर्बोध हैं और अनादि काल से लोक भाषा में प्रचलित हैं, वे सब देशी हैं । महाराष्ट्र, विदर्भ आदि नाना देशों में बोली जाने वाली नाना भाषाएं होने से देशी शब्द अनंत हैं।"
इस विशाल दृष्टिकोण के बावजूद भी उन्होंने इन अंतहीन शब्दों के संग्रहण की दुरूहता को ध्यान में रखते हुए केवल प्राकृत भाषा से सम्बन्धित शब्दों को ही देशी मानकर उनका अविकल संकलन किया है।
त्रिविक्रम के अनुसार आर्ष और देश्य शब्द विभिन्न भाषाओं के रूढ़ प्रयोग हैं। अतः इनके लिए व्याकरण की आवश्यकता नहीं है। उन्होने छह विभिन्न सूत्रों द्वारा देशी शब्दों को छह विभागों में विभक्त किया है-- १. वा पुआय्याद्या::– इसके अन्तर्गत स्वर आदि की विशेष आयोजना से उत्पन्न १. प्राकृत व्याकरण १११ । ५. अष्टाध्यायी ११११७५ । २. वाग्भटालंकार २।२।
६. अनुयोगद्वार २७० । ३. नाट्यशास्त्र १७१३ ।
७. देशीनाममाला १३,४ । ४. निरुक्त ॥१॥ ८. प्राकृतशब्दानुशासन ७: देश्यमाषं च रूढत्वात् स्वतंत्रत्वाच्च भूयसा ।
लक्ष्म मापेक्षते तस्य सम्प्रदायो हि बोधकः॥ ६. वही, ११२।१०६ ।
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