________________ 281 356.] Tantra श्लेश्मातककरंजाक्षनिंबाश्वत्थकदंबकौ // चिल्वो घटोदुंबरश्च चिंचाशोको दश स्मृता // 1 // - इति नत्वा // ब्रह्मरंध्रस्थस्वेतसहस्रदलकमलकर्णिकाया श्रीगुरुं श्वेतं गंधवस्त्रादिभूषितं ज्ञानमुद्रापुस्तकावराभयकरं सुप्रसन्नं वामांगतया देव्या रक्तवर्णया रक्तवत्रादिभूषितया वामकरध्तलीलाकमलया देव्या रक्तवर्णया रक्तवस्त्रादिभुजेनालिंगितं त्रिनेत्रं शिवरूपिणं श्रीगुरूं ध्यात्वा / / तच्चरणकमलगलितामृतधारया स्वदेह परिप्लतं मत्वा // मानसी पूजां कुर्यात् // etc. Ends.- fol. 320 शत्रवो नाशमायांतु मम निंदाकरा(fol. 33)श्च ये / / देष्टारः साधकानां च विनश्यंत शिवाज्ञया // 16 // ये निंदकास्ते विलयं प्रयांतु / ये साधकास्ते प्रभवंतु सिद्धाः // सर्वत्र देवी करुणावलोकिनी // पुरः पुरेशी मम सा निधत्तां / / 17 // इति शांतिस्तोत्रं // इति श्रीमन्महादेवेन रचिता श्रीपीतांबरापूजापद्धति- समाप्तम् // References.- Aufrecht records only our ms. in his Catalogus Cata logorum ii, 750. पीताम्बरासहस्रनाम Pitambarasahasranama No. 256 997. 1891-95. Size.- 9 in. by 24 in. Extent.- 23 leaves ; 4 lines to a page ; 35 letters to a line. Description.- Country paper ; Devanagari characters; handwri ting good ; paper not old, but musty. It contains one thousand names of goddess Pitambara or Vagalamukhi. The colophon gives the name of the Tantra from which it is taken but no reference to it is found anywhere. Age.- Sam. 1914. 36 [Tantral