Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 16
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 441
________________ 422 Tantra [398. धनदशशिमुवंतं चांकुश यो विशंक गणपतिमभिवंदे सर्वदानंदकुंदं ८ इति श्रीपद्मपुगणे उत्तरखंडे महेश्वरसंशदे वक्रतुंडस्तवनं संपूर्ण ५ References.-- Aufrecht notes only our ms. under this title in his ___ Catalogus Catalogorum i, 547". वज्रपञ्जरकवच Vajrapañjara kavaca No.399 1114 (2). 1886-92. Size.- 8t in. by 5, in. Extent.- 2 leaves ; 18 lines to a page ; 19 letters to a line. The work which is incomplete is a 7 of . There are several are as mentioned by Aufrecht in his Catalogus Catalogorum, but they are all different from it. In the beginning of this work, however, the name given to this work is श्रीकवच. Age.-- Appears to be very old. Author.-- Anonymous. Begins.- fol. I07F अथ श्रीकवचं लिख्यते ॥ रों श्रीभैरव उवाच ॥ डों यो देवदेवो भगवान भास्करो महसां निधिः । गायत्रीनायको भास्थान सवितेति प्रगीयते ॥१॥ तस्याहं कवचं दिव्यं वज्रपचरकाभिधं । सर्वमन्त्रमयं गुह्य मूलविद्यारहस्यकं ॥२॥ सर्वपापहरं देवि दुःखदारिद्रयनाशनं ।। महाकुष्ठहरं पुण्यं सर्वरोगनिबर्हण ॥ ३॥ सर्वशत्रुसमूहन्नं संग्रामे विजयप्रदं। सर्वतेजोमयं देवं सर्वदानवनाशनं . मातृकावेष्टितं धर्म भैरवानननिर्गतं रणे राजभये घोरे सर्वोपद्रवनाशनं ग्रहपीडाहरं देवि सर्वसंकटनाशनं etc. Ends.- fol. 1080 अथ ध्यानम् धूम्रध्वजं तथा मालां रश्मिपुशंकरद्वये । वहन् सप्ताश्वगः सूर्यों द्विभुजः पातु नो रविः इति ध्यात्वा पाठं कुर्यात्

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