Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 16
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 467
________________ 448 Tantra [424. Begins.- fol. I0 श्रीगणेशाय नमः ॥ धिगणाधिपतये नमः श्रिभवानीशंकराय नमः। वाराहीतत्रे॥ चंडीपाठे फलं देवि श्रृणुष्व गदतो मम। संकल्प्य पूर्व संपूज्य न्यस्यांगेषु मनु क्रमात् ।। पठनाद्वलिदाद्धि सिघिमानोति साधिकः । उपसर्गोपशान्यर्थ त्रिरावृत्तिं पठेन्नरः।। ग्रहोपशांतो कर्तव्या पंचावृत्तिर्षरानने । महाभये समुत्पन्ने सतावृत्ति समुनयेत् ॥ etc. Ends.-iol. 19° इदमेव पूजाहोमबव्यादिविधानं नवरात्रेपि ज्ञेयं विशेषस्तु मत्कृते निर्णयसिंधी नवरात्रनिर्णये ज्ञेयः। इति शतचंडीसहस्रचंडीप्रयोगः॥ यो भादृतंत्र गहनार्णवकर्णधारः । शास्त्रांतरेषु निखिलेष्वपि मर्मभेत्ता । योत्र भ्रमस्तु विहितः कमलाकरण । प्रीतो मुनास्तु सकृती बुधरामकृष्णः ॥१॥ इति श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपाणिरामेश्वरभट्टसरिमनुनारायणभट्टसतमिमांसकरामकृष्णभट्टात्मजकमलाकरभट्टकृतं शांतिरत्नं समाप्त। श्रीभवानीशंकरार्पणमस्तु । स्वस्ति श्रीनृपशालिवाहनशके १६५८ नलनामसंवत्सरे कार्तिकमासे गुरो लिथित छी नी सप्तम्याय तिथी समाप्तः। श्रीदुर्गायै नमः। श्रीजगदंबार्पणमस्तु श्रीभवानीशंकरार्पणमस्तु श्रीजगदंबार्पणमस्तु । श्रीवेद पुरुषाय नमः ।। (हरमाहादेवा obliterated) References.- ( 1 ) Mss.-A-Aufrecht's Catalogus Catalogorum :i, 6300 ; ii, 149, 228° ; iii, 131'. B-Descriptive Catalogues :B. B. R. A. S. Car. No. 732. Weber's Berlin Cat. No. 1312 also refers to our work, although it is not mentioned so there. See also I.O.Car. No. 1758, p.569* where we find the last verse and the colophon of our ms. ( 2 ) Printed Editions :Santikamalakara, Poona, 1889.

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