Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 16
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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[446.
470
Tanira Ends.-- folio g.
ज्ञात्वा गुरुमुखात्सम्यक स्रयेनु शतावधि ।
नाभक्ताय च दातव्यं परशिष्याय संदरि ।। » -- folio gb
दक्षिहस्ते देवि युक्तं शातं केशवसंयुतम् । घातं मुनिरसोपेतं णांतं पत्न्यर्धसंयुतम् ॥ मुपुत्राय मुशिष्याय भक्तियुक्ताय धीमते । रुद्रमंख्याकयंत्राणि सर्वस्वं मम पार्वति ।।
इदं गोप्यतरं तंत्रं तवाग्रे प्रकाशितम् । - किंबहुक्तेन देवशि कलो कल्पतरूपमम् ॥
पति श्रीदक्षिणामूर्तिपार्वतीसंवादे शिवनृत्ये शतकोष्ठयंत्रे नवमः पटलः॥
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शिवप्रसादसुन्दरस्तव
Śivaprasādasundarastava
243. No. 447
1883-84. Size.— 10% in. by 7% in. Extent.- 3 leaves ; 22 lines to a page ; 28 letters to a line. .
A Stotra of Siva by Rajanaka Sankarakantha, son of . Rajanaka Avatarakantha in so verses. Age.- Appears to be very old. Author.- Rajanaka Sankarakantha. Begins.- fol. II.
श्रीगणेशाय नमः ॥ डों वाणी स्यान्मे यथा त्वदुणगणगणनेनामिका नित्यचर्चापूपामोदावबोधे नवनवरचिता कर्णनायां च करें। स्वन्मातस्पर्शसौख्ये दृगपि शुचिमहदूपतत्त्वावलोके कर्तव्योयं प्रसादः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शम्भो ॥१॥ यज्जातोन्यर्थ एवार्थिजनमयहरी भक्तियुक्ति विना ते दृष्टान्तस्तत्र दिष्टप्रथितनियमवान् कर्मदक्षोऽपि दक्षः। सेयं हंसीध पनान्तरविकृतमतिः मानसे मे यथा स्याद
कर्तव्योयं प्रसादः शिव शिव शिव मोः श्रीमहादेव शम्भो ॥ २॥ etc. Ends.- fol. 1976
काश्मीरान्तरवर्तिपंडितशिरोरत्नावतारात्मजः श्लोकः शंकरकः त्वदर्थिपदवी योग्यप्रसादार्थनात् । कुर्वन् शंकर सहयाविशदया दृष्टया समालोक्यतां लक्ष्मीवान् गुणसागरः किल विभो केाभवान्नार्थ्यते ।। ५०॥
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