Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 16
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 427
________________ 408 Begins. ib श्रीगणेशाय नमः ॥ Ends.- fol. 17b Tantra बकस्य माहात्म्यं वक्तुमिच्छामि सांप्रतं । विस्तरेण यथातथ्यं प्रसन्नो वक्तुमर्हसि । एवं पृष्टः प्रसन्नात्मा तं प्रत्याह महामुनिः । अस्य मंत्रस्य माहात्म्यं विस्तरेण न शक्यते । वक्तुं वर्षशतेनापि तस्मात्संक्षेपतः शृणु । महता तपसा दृष्टा मृतसंजीविनी मया । नासाध्यं तपसा किंचित्रिषु लोकेषु विद्यते । विधिं तस्य प्रवक्ष्यामि समाहितमनाः श्रृणु । etc. References. ततः प्रधानपूजा ॥ सा तु प्रत्यक्षा मानसा वा विधेया ॥ तदनंतरं जपं कुर्यात् ॥ तत्रादौ पुरश्र्वरणमयुतं यत्कृतं जपसंख्यानं विदितं ते महेश्वर ॥ भोगापवर्गसिद्ध्यर्थं गृहाणपरमेश्वर || अनेन मंत्रेण जपनिवेदनं कृत्वा संहारमुद्रां प्रदर्शयेत || यथाखं विहरेदिति ॥ इति चककल्पोक्त मंत्रन्यासठपूजाविधिः समाप्तः । श्रीनृत्यंजयः प्रीयतां । लघुस्तव or त्रिपुरास्तोत्र [384. वेदपूर्णमुखं विप्रं सुभक्तमुपभोजयेत् । न च मूर्ख निराहारं षड्रात्रमुपवासिनं ॥ Aufrecht mentions one Tryambak atantra and under it Tryambakatantre Mahāmṛtyunjayakalpa in his Catalogus Catalogorum, ii, 5.b. He mentions one Vasisthakalpa also on i, 5560. Laghustava or Tripurastotra 647. 1883-84. No. 385 Size. 12 in. by 4 in. Extent.— 1 leaf ; 18 lines to a page; 65 letters to a line. Description.-- Country paper; Devanagari Characters; hand. writing legible; two lines in red ink on each border; paper old and musty. Another copy. It is assigned to Kalidasa by the scribę through mistake,

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