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-निमित्तशास्त्रम
- मैं निमित्त शास्त्र नामक ग्रन्थ का कथन करूंगा।
अह खलुमारिसिपुत्तियणाणणिमुत्तुपाय। पस्सयणपक्खइस्सामिवम्गमुणिसिद्धकम्मं ॥ जोइसणाणोविहपणविऊणव्वाव्वसव्वणितुप्पायं।
तंखलुतिविहेण वोच्छामि ॥३॥ अर्थ :
यह निश्चय है कि निमित्तशास्त्र तीन प्रकार का है। ज्ञानी पुरुषों जे निमित्तशास्त्र का जैसा निरूपण किया है, मैं ऋषिपुत्र भी वैसा ही निरूपण करूंगा। भावार्थ:. निमित्तशास्त्रों में तीन प्रकार के निमित्तों का कथन पाया जाता
है। ग्रन्थकार कहते हैं कि मैं पूर्वाचार्यों के मत का अनुसरण करते हुए उन । तीनों का वर्णन करूंगा।
इस गाथा के व्दारा व्रन्थकार ने अपनी आत्मकर्तृता का निषेध किया है तथा स्वेच्छाचारिता को निरस्त करते हुए पूर्वाचार्यो के मत की पुष्टि की है। इससे इस अन्य की प्रामाणिकता भी सुस्पष्ट हो जाती है।
जे दिठ्ठ भुविरसण्ण जे दिट्ठा कुहमेण कत्ताणं।
सदसंकलण दिनावउसदिय ऐणणाणधिया ॥४|| अर्थ :
जो भूमि पर दिखाई पड़ें. जो आकाश में प्रकट होते ही लथा जिसकाइ शब्द सुनाई दे. इसतरह निमित्त तीन भेदों वाला है ऐसा ज्ञान से जाना जाता है। भावार्थ :
निमित्त तीन प्रकार के होते हैं - १. जो भूमि पर दिखाई पड़ें। जैसे - चंचल पदार्थों का अचल हो जाना।