Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 107
________________ ----निमित्त निमित्तशारंभ्रम संखेवेण विकहियंतणुप्पायाणंतुलक्खणंथोवं। इत्तोजोआहिरित्तंतंपुणअण्णंतुजाणिज्जा।। १८६|| अर्थ : इस प्रकार यह उत्पातों का स्वरूप मैंने संक्षेप से कहा है। जिनको अधिक जानने की इच्छा हो वे ग्रन्थान्तरों से जान लेवें। भावार्थ:थका करते हुए कहते हैं कि निमित्तशास्त्र । के आधार से उत्पातों का वर्णन मैंने किया है, जो संक्षिप्त है । जो भव्य है ॐ इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का अभिलाषी है, उसे अन्य ग्रन्थों में का स्वाध्याय करना चाहिये । एवं बहुप्पयारंणुप्पायपरंपराय णाऊगं। रिसिपुत्तेण मुणिणासव्वप्पियंअप्पगंथेण॥१८७।। अर्थ : इसतरह अनेक प्रकार से उत्पातों का स्वरूप मुझ ऋषिपुत्र मुनि ने स्व-बुद्धि के अनुसार इस छोटे से ग्रन्ध में बताया है। भावार्थ: अन्धकार ने अन्तिम मंगल करते हुए इस कारिका में अपना जामोल्लेख व लघुता का प्रदर्शन किया है। निवेदन श्रुतभक्ति से प्रेरित होकर मैंने इस अजुवाद को करने का प्रयत्न किया है। ज्योतिष विषयक ज्ञान मुझमें नहीं है। इस अनुवाद में हुई तृटियों के लिए गुरुजन मुझे क्षमा करें। विन्दगण इस अनुवाद में हुई भूलों का संशोधन प्रस्तुत करके मुझे सहयोग प्रदान करें । मुनिसुविधिसागर

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