Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 128
________________ ------ तशास्त्रमा (११) ७. सज्जनचित्तवल्लभ: कौन जैनसाहित्यप्रेमी आचार्य श्री मल्लिषेण जी के नाम से अपरिचित होगा ? आचार्य श्री मल्लिषेण का समय ईसवी सन् १०४७ का है। आचार्यदेव की यह प्रेरणादायक लघुकृति है। इस कृति में मात्र २५ पद्य हैं। एक-एक पद्य में अर्थगाम्भीर्य व उपदेश शैली का पूट है। एक-एक पद्य शिथिलाचार का विरोध व साधक शिष्य के लिए सन्मार्गदर्शन करने वाला है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद परम पूज्य युवाम् नि श्री सुविधिसागर जी महाराज ने किया है। सहयोग राशि :-- ११ रुपये १८. ज्ञानांकुशम्: परम पूज्य, योगीसम्राट श्री योगीन्द्रदेव आचार्य अध्यात्मपिपासु भव्यों के लिए महान मार्गदर्शक हैं। आचार्य श्री के करकमलों से अक्षर विन्यासित यह लघुकाय कृति है। इस ग्रन्ध में मात्र ४४ श्लोक हैं। ध्यान के विषय में अत्यन्त उपयोगी सामग्री इस ग्रन्थ में पायी जाती है। ___ परम पूज्य जिनवाणी कण्ठाभरण, मुनिश्री सुविधिसागर जी महाराज ने अनेक आगम, मनोविज्ञान, ध्यानविज्ञान और शरीरविज्ञान का सहयोग लेकर इस कृति का अनुवाद किया है। सहयोग राशि:- ३० रुपये. ९. वैराग्यमणिमाला: वैराग्य को परिपुष्ट करने के इच्छुक भव्य को इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करना चाहिये । इस ग्रन्थ के रचयिता परम पूज्य आचार्य श्री विशालकीर्ति जी महाराज हैं । ग्रन्ध की भाषा अलंकारिक है। ग्रन्थ में कुल ३३ श्लोक हैं। परम पूज्य जिनवाणी के अनन्य उपासक, मुनिश्री सुविधिसागर जी महाराज ने इस कृति का अनुवाद किया है। .. सहयोग राशि :- १५ रूपये.

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