Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 117
________________ निमित्तशास्त्रमा १०४ शांति हो जाती है। ११४. उत्तमपुरुष उत्पातों को विचार कर देश विनाशक हेतु कहते है । ११५. जहाँपर बच्चे खेलते-खेलते रोने लगें और मुंह से कहें कि भीख * दो तो जानली कि अवश्य कुष्काल पड़ेगा । ११६. अब उल्कापात का बखान करते हैं। * उल्कापात उसे कहते हैं जो कि आकाश मैं चमकती हुई चिनगारियों की लंबी शिखा बन जावे । पूर्व और उत्तर दिशा में अगर उल्का नजर आवे तो उस नगर का अवश्य ही नाश होगा। ११७. जहाँ पर हर महीने उल्का नजर आवे, इस तरह यदि छह माह तक उल्का दिखै तो अवश्य उस जगह के मजुष्यों के प्राण जायेंगे। ११८-११९. सफेद उल्का ब्राह्मणों का नाश करती है और लाल उल्का त्रियों को देती है। परिवी उर का वैश्यों का नाश करती है। और काली उल्का शूढ़ों का संहार करती है। १२०. पंचरंगी उल्का मरी की बीमारी करती है । और जो इधर-उधर से है टकारा है वह प्राणनाश करती है। ६१२१. संध्या समय की और अर्धरात्रि की उल्का हवा और अग्निभय करती है और सूर्य उदय की पहली उल्का नृपतिनाश करती है। १२२. जो उल्का पडती हुई नजर आवे तो सुवर्ण का नाश करती है। और जो उल्का अंगारे लिये हुवे गिरै तो अग्निदाह करती है। १२३. शुक्रोदय में उल्का जलती हुई नजर पडै तौ रस के भांडों का नाश करती है और खुजली की बीमारी पैदा करती है। १२४. राहू के उदय में उल्का गिरै तो पानी का नाश करती है। ११२५. पश्चिम दिशा में पड़ी हुई उल्का घोर पीडा करती है और उत्तर दिशा मैं पड़ी हुई कुशल और सुभिक्ष करती है। १२६. अविनकौंण मैं अगर उल्कापडै तौ अग्निभय करती है और दक्षिण दिशा मैं पडी हुई उल्का पीडा संताप पैदा करती है। नैऋत्य कोण मैं पड़ी। हुई उल्का द्रव्यनाश करती है। ११२७. नीची या ऊर्ध्व चलती हुई उल्का पानी की वर्षा और हवा लाती है। वायव्य कोण की उल्का रोग-भय करती है। परंतु अगर उल्का वायव्यकीण की हों तो शुभ है। R

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