Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 119
________________ लिपिजशारत्राम (१०६ मैं गंधर्वनगर नजर आवै तो सुभिक्ष करता है और रोगहरता होती है। . अब जिस वर्ण का गंधर्वनगर फसल का नाश करता है यह बतलाते हैं - १४१. पंचरंगा गंधर्वनगर भयकर्ता और रोगभय करता है। श्वेत रंग का घी-तेल-दूध का नाश करता है। १४२. काले रंग का वस्त्रनाश करता है। अतिकाल तक लाल रंग का गंधर्वनगर दिखाई दे तो ज्यादा अशुभ होता है। १४३. यह गंधर्वनगर जिस शहर में नजर आवै तौ उस ही मैं अशुभ होता। है। और जिस दिशा में दिखाई दे तो उस ही दिशा मैं नुकसान करता है। १४४. यदि बीच मैं आकाश के तारों की तरह गंधर्वनगर छाया हुआ नजर आवे तो मध्य देश को अवश्य नाश करता है। ११४५. जितनी दूर तक फैला हुआ गंधर्वनगर नजर आवै तौ उत्तनी दूर तक देश नाश अवश्य करेगा। १४६. इंद्रधनुषाकार नगर या..... के आकार यदि गंधर्वनगर नजर आवै । तो देशनाश, व्याधि से मरण और दुर्भिक्ष अवश्य करेगा। १४७. अगर शहर के ऊपर नगर गांव के आकार मंधर्वनगर बन जावे 8 और उसके चौफेर कोट दिखाई दे तो निश्चय राजा की मृत्यु होइ। १४८. पत्थरों का पड़ना कई तरह से होता है और कई प्रकार के पडते हैं। इसलिए इनका निमित्त कहते हैं। १४९. चांवल, सरसों या खजूर फल जैसे जहाँ पत्थर गिरे वहां सुभिक्षर होगा। १५०. बहरीफल जैसे, मूंग जैसे, अरहड जैसे पत्थर का पडना भी सुमिक्ष करता है। १५१. शंख जैसे सफेद छोटे-छोटे मसूर जैसे पत्थर गिरे तो पानी बरसमें की खबर देते है। १५२. मेंडक, घडे, हाथीदांत जैसे अगर पत्थर पडै तो जरूर देशनाशर करता है। १५३. मटके जैसे, हाथी जैसे, छत्र जैसे, थाली जैसे या वजाकार मैं पत्थर पडें तो देशमाश करते है और राजा को भी मृत्यु का सूचक है। अथ विद्युल्लता रूपम् ११५४. यदि उत्तर दिशा को बीजली चमकै तौ हवा चलै या अवश्य पानी ।

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