Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 69
________________ तिशास्त्रम A २ इयणुप्पापणिमित्तंजाणेयवंचपयत्तेण॥१३३॥ अर्थ : पानी मन्त्र बरसेगा । गेहूँ आदि धान्य नाश को प्राप्त होंगे। यह सब उत्पात इस प्रकार के उल्कापात से होता है। प्रकरण का विशेषार्थ का निमित्तशास्त्रों में आकाश से पतित होने वाले ताराओं को उल्कापतन कहते हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए उल्कापतन का विषय है आश्चर्यकारक रहा है। वे इसके रहस्य को अवगत करने का प्रयत्न कर रहे हैं। कुछ वैज्ञानिक इसे टूटने वाला नक्षत्र {Shooting Stars} कहते । हैं तो कुछ वैज्ञानिक इसे अग्निगोलक {Fire Balls} मानते हैं। अन्य। वैज्ञानिक इसको उपनक्षत्र {Asterides} कहते हैं। संहिता ग्रन्थों में उल्कापतन का विस्तारपूर्वक वर्णन पाया जाता है है। यहाँ उसका वर्णन संक्षेप से किया जा रहा है। ६ लालवर्गीय वक्र, टूटी हुई उल्का को पतित होते हुए देखने वाले व्यक्ति को भय, पाँच माह के अन्दर परिवार के किसी इष्ट व्यक्ति की मृत्यु, धन की हानि, दो माह के बाद किये गये व्यापार में हानि, राजकीय, कर्मचारियों से विवाद, मुकदमा और अनेक प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त हु होना पड़ता है। श्यामवणीय उल्का का पतन देखने से व्यक्ति के किसी आत्मीय की मृत्यु सात माह के अन्दर-अन्दर ही होगी। उसे हानि, अशान्ति, । झगड़ा और परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । यदि कृष्णवर्णीय उल्का का पतन सन्ध्याकाल में दिखाई पड़ता है तो उसे भय, विद्रोह और अशान्ति का सूचक जानना चाहिये । यदि सन्ध्याकाल के तीन द्र घटिका के बाद (७२ मीनट के बाद) उल्कापतन दिखाई दे तो विवाद, . * कलह, पारिवारिक कलह, किसी इष्ट व्यक्ति को कष्ट आदि का संसूचक है। मध्यरात्रि का उल्कापतज देखने पर स्वयं को अपार को कष्ट होगा, ऐसा प्रकट करता है। उससे किसी पारिवारिक सदस्य की मृत्यु, आर्थिक संकट और अशान्ति का बोध होता है। KHARE MAN

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