Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 59
________________ aashan 1 (निमित्तशास्त्रम्) ४६ अरवंति पुरविणासं भयं च रण्णं णिवेदेहि ॥ १०० ॥ अर्थ : यदि दिन में उल्लू और रात में कौवे रोवें तो नगर का विनाश व संग्राम का भय बना रहेगा । प्रकरण का विशेषार्थ छत्र या चमर अपने आप टूट जाये और राजा के पास आकर गिरे, तो पाँचवें दिन राजा की मृत्यु होगी। आचार्य श्री भद्रबाहु का मत है - राजोपकरणे भग्ने, चलिते पतितेऽपि वा । क्रव्यादसेवने चैव, राजपीडां समादिशेत् ॥ ( भद्रबाहु संहिता : - ४ / ५५ ) अर्थात् :- राजा के उपकरण (छत्र, चमर, मुकुट आदि) के भंग होने पर, चलित, होने पर गिरने पर अथवा मांसाहारी के व्दारा सेवा करने से राजा को पीड़ा होगी ऐसा कहना चाहिये । 1 जहाँ पर बिना बजाये भी ढोलक आदि की आवाजें सुनाई दें. वहाँ के राजा की मृत्यु पाँचवें माह में होती है। यही फल यक्ष को मूसे के 'साथ लड़ते हुए देखकर कथान करना चाहिये । कोट पर पक्षियों के नाचते अथवा लड़ते हुए देखने से बच्चों की, हानि होती है। दरवाजे पर पक्षियों के नाचते अथवा लड़ते हुए देखने से गर्भवती स्त्रियों की हानि होती है। गऊशाला या घुड़साल पर पक्षियों के 'नाचते अथवा लडते हुए देखने से साहूकारों की हानि होती है। देवमन्दिर' . पर पक्षियों के नाचते अथवा लड़ते हुए देखने से ब्राह्मणों की हानि होती. है। राजमन्दिर पर पक्षियों के नाचते अथवा लड़ते हुए देखने से राजा का • मरण होता है। चौराहे पर पक्षियों के नाचते अथवा लड़ते हुए देखने से, सम्पूर्ण शहर का विनाश होता है। यदि ऐसा प्रतीत हो कि सूर्य में छेद हैं तो एक वर्ष के अन्दर उस नगर के राजा की मृत्यु हो जायेगी। दिन में उल्लू और रात्रि में कौवें यदि रोवें अथवा घूमें तो संग्राम होकर उस नगर का नाश हो जायेगा ।

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