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निमित्तशारत्रम्
(भद्रबाहु संहिता:-१४/५८) अर्थात् :- यदि रात्रि के समय में श्वेतवर्ण का इन्द्रधनुष दिखाई देता हो तो वह ब्राह्मणों के लिए भयदायक होता है। यदि रात्रि के समय में रक्तवर्ण का इन्द्रधनुष प दिखाई देता हो तो वह क्षत्रियों के लिए भयदायक होता है। यदि रात्रि के समय में • पीतवर्ण का इन्द्रधनुष दिखाई देता हो तो वह वैश्यों के लिए भयदायक होता है। यदि रात्रि के समय में श्यामवर्ण का इन्द्रधनुष दिखाई देता हो तो वह शूद्रों के लिए मकवायक होता है।
भट्टारक श्री कुन्दकुन्द जी महाराज भी इस बात की पुष्टि करते क हुए लिखते हैं -
सितं रक्त पीतकृष्णं, सुरेन्द्रस्यशरासनम्। भवेद् विप्रादि वर्णानां, चतुर्णा नाशनंक्रमात्॥
(कुन्दकुन्द श्रावकाचार :-८/१२) इन्द्रधनुष के श्वेतरंग से सम्बन्धित फलादेश में प्रस्तुत ग्रन्थकार का मतभेद है । अन्धकार के अनुसार श्वेतरंग का इन्द्रधनुष । संग्रामकारक और मनुष्यों के लिए कष्टसूचक है।
इन्द्रधनुष का कम्पित होजा अथवा भग्न होना राजा और राज्य के के लिए हानिकारक है। इस विषय में आचार्य श्री भद्रबाहुजी का मन्तव्य ॐ इसप्रकार है -
भज्यते नश्यते तत्तु, कम्पते शीर्यते जलम् । चतुर्मासं परं राजा, म्रियते भत्यते तथा॥
(भद्रबाहु संहिता:- १४/५९) अर्थात् :- यदि इन्द्रधनुष भग्न होता हो, नष्ट होता हो, काँपता हो और जल की वर्षा करता हो तो राला चार महीने के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त होता है अथवा ) आघात को प्राप्त होता है।
इन्द्रधनुष टूटता हुआ, बिस्वरता हुआ अथवा अग्नि से युक्त * होता हुआ दिखाई पड़ना अशुभकारक है। मधु के छत्ते के समान आकार * का धारक इन्द्रधनुष महामारी का सूचक है। एक के ऊपर एक ऐसे दो ह इन्द्रधनुष दिखाई देने पर उस नगर के मनुष्यों को हर प्रकार की अपार है १ हानि सहन करनी पड़ेगी।