Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 56
________________ [४३ ----निर्मितशास्त्रम् - संघर्ष की स्थिति बढ़ती जाती है। 3 प्रतिमा का रोना राजा, मन्त्री या किसी महान नेता की मृत्यु का सूचक है । प्रतिमा का हँसना पारस्परिक विद्वेष, संघर्ष एवं कलह काम । सूचक है । प्रतिमा का चलना अथवा काँपना बीमारी, संघर्ष, कलह.. विषाद, आपसी फूट का सूचक है 1 प्रतिमा का गोलाकार चक्कर काटना भय, विद्वेष, असम्मान, आर्थिकहानि तथा देश की जनहानि का सूचक है। प्रतिमा का हिलना तथा रंग बदलना अनिष्टसूचक है । इस निमित्त को तीन महीनों में अनेक प्रकार के कष्टों के आगमन की सूचना ही। समझनी चाहिये। किसी भी देवता के प्रतिमा का पसीजना अग्निभय, चोरभय है और नगर में महामारी का सूचक है। धुओं सहित प्रतिमा से पसीना निकले। , तो जिस प्रद्देश में यह घटना घटित होती है, उसके सौ कोस की दूरी तक, चारों ओर धन और जन की क्षति का कारण होती है। उस स्थानपर अतिवृष्टि या अनावृष्टि के कारण जनता को महान कष्ट होगा। तीर्थंकर की प्रतिमा से पसीना निकलने पर धार्मिक विव्देष • फैलेगा, जिससे मुनियों और श्रावकों को विधर्मियों के व्दारा उपसर्ग सहन करना पड़ सकता है। राम की प्रतिमा से पसीने को निकलते हुए। देखने से उस स्थानपर लूटपाट और उपद्रवों के व्दारा अपार धन का विनाश हो जाता है । सूर्यप्रतिमा से पसीने के निकलने पर मनुष्यों को। * अचानक ही अपार कष्ट भोगने पड़ते हैं। * ग्रहों की प्रतिमायें, शासनदेवी-देवताओं की प्रतिमा और दिक्पाल देवों की प्रतिमाओं में किसी भी प्रकार की विकृति दिख पड़ने पर समाज की हर तरह से हानि होती है। प्रतिमा का विकृतरूप दिखने पर प्राप्त होने वाले अशुभ फलों की शान्ति का उपाय बताते हुए ग्रन्थकार ने लिखा है - मासे हितीइयेहिरूवंदंसंतिअप्पणा सव्वे। जइण विकीरहपूया देवाणं भत्तिएएणं॥८९।। अर्थ :- ऐमा उत्पात होने पर मनुष्यों को चाहिये कि तीन माह तक भकिनसहित जिनेन्द्रदेव की पूजन करें।

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