Book Title: Chitramay Tattvagyan Author(s): Gunratnasuri Publisher: Jingun Aradhak Trust View full book textPage 5
________________ १. समवसरण से ध्यान ध्यान यह अभ्यन्तर तप है । इससे आत्मा केवलज्ञान तक पहुँच सकती है | ध्यान में मन का बहुत महत्व है । अगर मन स्थिर नहीं होता, तो ध्यान हो ही नहीं सकता | चंचल मन को स्थिर करने पर ही ध्यान की उपलब्धि होती है । भगवान महावीर ने चंचल मन को पलटा, तो मोहराजा भगा और प्रभु को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । इसीलिये पूजा में कहा गया है कि "तस रक्षक मन जिन पलटायो, मोहराय जाये भाग्यो, ध्यान केसरिया केवल वरिया, वसन्त अनन्त गुणगाय'' मन को पलटने के लिये नवपद के केन्द्र में रहे हुए अरिहंत भगवान श्रेष्ठ आलम्बन है । कितने ही लोग कहते हैं कि नवकार मंत्र तो हम गिनते हैं, मगर मन दूसरी जगह भटकता है । इस तासीर को मिटाने के लिये नवकार महामंत्र गिनने से पहले मन को अरिहंत भगवान व समवसरण में स्थिर कर देना चाहिये । इसके लिये सब से पहले अरिहंत भगवान, उनकी १२ पर्षदा व समवसरण का ध्यान करना चाहिये, उसके बाद समवसरण के पहले गढ से आगे बताये जाने वाले क्रम के मुताबिक १०८ नवकारमंत्र गिनने से अद्भुत लाभ होगा । हाँ, यदि वहां मन अस्थिर बन गया, तो आप नवकारमंत्र का स्थान ही भूल जायेंगे । माला के बिना इस श्रेष्ठ प्रयास से १०८ नवकारमंत्र गिनने के लिये प्रारंभ में थोडी कठिनाई महसूस होगी, परंतु अभ्यास करने पर जरुर सफलता मिलेगी। समवसरण ध्यान हेतु सूचना :- प्रारंभ में समवसरण का चांदी के गढ़ की कल्पना करें । उसके चारों ओर बाहर के भाग में ५४४ = २० कमल व अन्दर के भाग में ४४४ = १६ कमल, कुल ३६ कमल की धारणा करें । उसका दूसरा गढ़ सोने का व तीसरा गढ़ रत्ल का है, ऐसी धारणा करें । उसी प्रकार दोनों गढ़ों पर ३६-३६ कमल की धारणा करें। तीसरे गढ़ पर (१) सिंहासन पर चौमुखी अरिहंत भगवान बिराजमान होकर योग मुद्रा से देशना दे रहे हैं । (२) देव चामर ऊपर नीचे घूमा रहे हैं, वे मानो चित्रमय तत्वज्ञान 900000000000 Se Dily: www.jainelibrary.orgPage Navigation
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