Book Title: Chitramay Tattvagyan Author(s): Gunratnasuri Publisher: Jingun Aradhak Trust View full book textPage 4
________________ 2 लेखक के दो शब्द इस युग में चारों ओर पश्चिमी वातावरण की धूम मची है । इसलिये भौतिकवाद दिन दुगुना रात चौगुना बढता जा रहा है और आत्मवाद भूलाता जा रहा है । ऐसी स्थिति में युवा पीढी का लगाव आत्मतत्व आदि की ओर बढ़ाने के लिये २-३ आर्टीस्टो को मार्गदर्शन देकर ३० - वर्ष पहले कई चार्ट बनवाये गये थे । आज के युवक - युवतियों को चित्रमय साहित्य ज्यादा आकर्षण करता है । एवं रुचिकर भी बनता है । क्योंकि ओक चित्र हजार शब्दों से भी ज्यादा प्रभावशील रहता है । अंग्रेजी में कहावत है कि one picture is worth than thousand words. यद्यपि १६-१७ वर्ष पहले आध्यात्मिक शिक्षण केन्द्र ने १७ चित्र ओफसेट प्रेस में चार रंग में छपवा दिये थे । परंत विश्वप्रकाश पत्राचार पाठ्यक्रम, दीक्षा, प्रतिष्ठा आदि कार्यो में व्यस्त होने से इन चित्रों के विवेचन का मेटर तैयार न हो सका । संघवी भेरु तारक धाम तीर्थ की ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा के बाद सिरोही में मेरी स्थिरता होने से इनके विवेचन का मेटर तैयार करने का मौका मिला व संस्था के कार्यकर्ता को मेटर देते ही उन्होंने छपवाने की कार्यवाही शुरु कर दी । फलस्वरुप सचित्र तत्त्वज्ञान पुस्तक आपके कर कमलों में आ रही है। श्रीलोक प्रकाश, तत्वार्थसूत्र, बृहत् संग्रहणी व जैन तत्त्वज्ञान चित्रावली प्रकाश का आधार लेकर अथक प्रयत्न करके यह चित्रमय पुस्तक तैयार की गई है | उन सब का सहृदय आभार मानते हैं | जैन दर्शन का हार्द समझाने वाला तत्त्वज्ञान प्राप्त करके आप सम्यग्दर्शन प्राप्त करे या उसमें वृद्धि करें व परंपरा से अनन्तसुख वाले मोक्ष को प्राप्त करें । कोई क्षति रह गई हो, तो सूचित करें, जिससे नये संस्करण में संशोधन कर सके । इसका प्रकाशन ९८२ वर्ष के इतिहास में पहली बार होने वाली सामूहिक ३४ दीक्षाओं के प्रसंग पर हो रहा है । इसलिये इस ज्ञान महोत्सव से हृदय आनंदविभोर बना हैं। शास्त्रविरुद्ध कोई लिखा है, तो मिच्छामि दुक्कडं । महा सुद -४, आ. गुणरत्नसूरि दिन - -१६-२-२००२ श्री सिद्धगिरि सामूहिक दीक्षा महोत्सव समिति प्रेम भुवनभानु संयमवाटिका पालीताना जि. भावनगर (गुज.) | चित्रमय तत्वज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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