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तोर्थ - जिन विशेष
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अष्टापद आदि अनेक, जग तीरथ मोटां, तेहथी अधिकुं सिद्धक्षेत्र, अह वचन नवि खोटां ...१... जे माटे ओ तीर्थ सार, सासय प्रतिरूप, जेह अनादि अनंत शुद्ध, इम कहे जिन भूप...२... कलिकाले पण जेहनो ओ, महिमा प्रबल पडूर, श्री विजयराजसूरिदथी, दान वधे बहु नूर...३... [ २८ ]
धन धन विमल गीरिन्द, धन धन ऋषभ जिणन्द... १ महिमा को नहीं पार, सकल जीव हितकार... २ गीरि शिव सुखमाल,
धन धन सोरठ देश को, सिद्धाचल गीरि मंडणो, सिद्धि दायक यह गीरि, अनन्त मुनि मुक्ते गया, दर्शन फरशन जे करे, यह
कोड भवों में जे कीया, पाप छुटे ततकाल ... ३
कल्पवृक्ष चिंतामणी, इण भवमें गीरिवर सेवनसे लहे, भव भव तीर्थ निमित्त भासन सत्ता, प्रगट सच्चिदानंद आतमा, निर्मल
हितकार, सुख अपार...४
सिद्ध स्वरूप,
ज्ञान
पुंडरिक स्वामिना चैत्यवंदनो
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अनूप... ५
आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत, प्रगट नाम पुंडरीक जास, महीमांहे महंत...१... पंच कोड साथे मुणिंद, अणसण जिहां कीध, शुक्ल ध्यान ध्याता अमूल, केवल तिहां लीध ...२...
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