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तीर्थ - जिन विशेष
मल्या सत्य संतोष आदि सुमित्र, शुभ ध्यान कल्लोल वाध्या विचित्र, थयो गोपद प्रायः संसार सिंधु, वस्यो तुं मनमंदिरे विश्वबंधु... ७...
जिहां गरुड त्यां नागनो नहीं प्रचार, समय दाव नावे जिहां मेघ धार, देखी केसरी गजघटा दूर नासे,
प्रभो तुं मिल्याथी हुवो हुं सनाथ,
तुज ध्यानथी तेम संसार त्रासे... ८...
कृपानाथ ते जन्म कीधो कृतार्थ, टळी आपदा संपदा सर्व आवी,
प्रभु ताहरी भक्ति जो चित्त धारी... ६... बिराजो महाराज जो मुज मन्न,
न मांगु पछी तेहथी कांइ अन्य, ग्रो बांह्य तो छेह देशो न क्यारे, महापुरुष ते शरणे आव्या सुधारे... १०... (२१) विशद गुण संभृतं परम पद शोभितं, विमल गिरि राजितं विश्वनाथम्, सकल संयोग विच्छेदकं पारगं,
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अमित बल धारकं कर्म रिपु वारकं, सर्वदा नन्दितं विश्वबंधम्,
लब्ध परमात्म शुद्ध स्वरूपम्... १...
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