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तीर्थ-जिन विशेष
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सर्व मली अ संख्या सार, चौदशो बावन गणधार, पुंडरीक ने गौतम प्रमुख, जस नामे लहीओ बहु सुख. प्रह उठी जपतां जय जयकार, ऋद्धि वृद्धि वांछित दातार, रत्नविजय सत्यविजय बुधराय, तस सेवक वृद्धिविजय गुण गाय ।
श्री अरिहंत प्रभुना पंच कल्याणकना चैत्यवंदनो च्यवन कल्याणक
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चैत्यवंदन देवतणं विमान छोडी, जिनजी जब ज्यवन लहे, अंधकारनं शासन तुटेने, तेज धारा बह वहे, बत्रीश लाख विमान मालिक, सौधर्मेन्द्र देखतां, सात पगलां सामे चाली, शक्रस्तवथी सेवतां... १ गजवर वृषभने सिंह वली, लक्ष्मो सपने जोवता, फूल केरी माला देखी, चंद्र सूरज आवता, वनराज मध्ये शोभतो ते, धजा देखे आठमे, पूर्ण कलशो आगले ने, पद्म सरोवर दशमे ... २ रत्नाकर विमान वली, राशि तिहां रत्नो तणी, धूम्ररविण अग्नि जातो, जिन मात केरा मुख भणी, च्यवन कल्याणक समे जिन मात सवि से देखती, धर्मसूरि पसायथी मुज, वाणी जिनगुण गावती... ३ जन्म कल्याणक नु चैत्यवंदन
जिन जन्म थावे सुख पावे, सकल जीवो बहु परे, दिक्कुमरी छप्पन मिली आवे, सूती करम रंगे करे,
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