Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 125
________________ तीर्थ-जिन विशेष [१२१] अठ्यासो गणधर नमुं, सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शीतल तणां, गणधर गुणवंत...५... श्री श्रेयांसजिन तणां, गणधर बहोतेर नमिये, वासुपूज्य सगसठ नमी, भवना पाप निगमिये... विमल जिनवर तणां, गणधर सत्तावन जाणो, पचास अनंतस्वामीना, नित्य हैडे आणो.. तेंतालीश गणधर नम, धरमनाथ स्वामी, छत्रीस शांति जिणंदना, पंचमी गति पामी.. कुंथु जिनेसर सत्तरमां, गणधर जस पांत्रीस, श्री अरनाथ अढारमा, जस गणधर छे त्रीस...६... अठ्यावीस मल्लि तणां, गणधर अति चंग, मुनिसुव्रतना अष्टादश, प्रणमो मन रंग...१०... नमिनाथ अकवीसमा, सत्तर गणधर कहिये, नेमि निरंजन केरड़ा, अकादश लहिये...११... दश गणधर भावे नम, तेवीसमा प्रभु पास, अकादश जिन वीरना, पूरे जग जन आश...१२... अ चोवीशे जिन तणा, गणधर संख्या जाण, चौदर्श बावन नम, ज्ञानविमल गुण खाण...१३.. गणधर चोराशी कह्या, वलि पंचाणं छेक, दोय अधिक इगसय गणा, सोल अधिक शत अंक...१... शत सुमतिने गणधरा, इगसय अधिका सात, पंचाणुं त्राणु तथा, सुडशीइ इगशीह वात...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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