Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 141
________________ चैत्यवंदन संग्रह युगल क्षेत्रमां युगलनां, पूरे वांछित कल्प, दश जातिनां दश तरु, ओ छे शाश्वत कल्प... ४... उत्तम कुल निरोगता, राज ऋद्धि परिवार, आयु श्रद्धा देव गुरु, सुरपद शिवपद सार... ५... अ दश जाति इष्टफल, पावे समकितवंत, दुःख दोहग संकट टले, लहिये पद गुणवंत... ६... प्रत्यक्ष आरे पांचमो, मोटो ओ आधार, वंदना स्तवना नित्य करो, पूजो भाव उदार...७... इम सोहम कुल कल्पतरुओ, दीपविजय कविराज, वीर जगतगुरु राजनो, वरते अ साम्राज... ८... वीर प्रभुना शासनमां अकवीश उदयमां थनारा युगप्रधाननी संख्या . चैत्यवंदन [१३७] सिद्धारथ कुल दिनमणी, वर्धमान वड वीर, त्रिशला सुत सोहामणो, अनंत गुण गंभीर... १... भगवती सूत्रे गणधर पूछे गोतम स्वामी, ओ तुम शासन किहां लगे, वरतशे जग विसरामी...२... वीर कहे सुण गोयमा, अकवीश वरस हजार, गजपतिनी परे चालशे, पंचम काल मोझार...३... संख्या दोय हजार चार, होशे युगप्रधान, वीश उदय वरतशे, अकावतारी मान... ४... त्रेवीश उदयना वरणवं, वीश ঈवीश अठाणुं, अठयोतेर पंचोतेर, नेव्याशी शत जाणुं... ५... सत्याशी आठमे उदये, पंचाणं शत्याशी, छोतेर अठयोतेर वली, चोराशी गुणराशि... ६... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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