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तीर्थ-जिन विशेष
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में तो बोलिया पर तणां मर्म मोटा, नहिं भाखिया आपणा पाप दोषा, सदा संग कीधो परनारी केरो, नहीं पालियो धर्म जिनराज तोरो...४... 'पड्यो घर तणे पाप आशा विलुद्धो, नहीं सांभल्यो जिनराज उपदेश शुद्धो, हुं तो पुत्र परिवार शुं रंग रातो, नहीं जाणियो जिनवर काल जातो...५... घणां आरंभनां काम करी पिंड भर्यो, में मूरखे नरभव फोक हार्यो, गयो काल संसार अळे भमंता, सह्यां तेहथी दुर्गति दुःख अनंता...६... घणां कष्टे हवे जिनराज देव पाम्यो, त्यारे सर्व संसार, दुःख वाम्यो, ज्यारे श्री जिनराजनुं मुख दीठं, मारे लोयण रूपडे अमिय वायुं....... आवी कामधेनु मुज घर मांहि, भरी रत्न चिंतामणी हेम थाली, मारे घर तणे आंगणे कल्प वृक्ष, फल्यो आपवा वांछित दान वृक्ष...८... गयो रोग संतापने सर्व माठो, जरा जन्म मरण तणो त्रास नाठो, तारे शरणे आव्या पछी लाज कीजे, कर्या अपराध ते सर्व खमीजे...६...
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