Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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तीर्थ-जिन विशेष
[१२५]
. केवलज्ञान कल्याणक नु चैत्यवंदन उपसर्ग ने परिषह थाता, देव ने मनुज तणां, तिर्यंच केरा जे वळी, दुस्सह भेळा मळे घणां, सवि ते सही शुभ भावथी, जिन घाति कर्म चोकरे, निज बाहु वीर्य पराक्रमे प्रभु ज्ञान केवलने वरे...१ त्रण गढ रचे तिहां देवताओ, रजत स्वर्ण मणीमया, बार पर्षदा बेसे तिहां, सवि जीव तो आनंद भया, प्रभू देशना सुणतां तिहां, सुर मनुज ने तिर्यंच जे, ओक वचन मांही अनेक जीवनी, शंसा प्रभु फेडंत जे...२ अष्ट प्रातिहार्य वली, अगियार अतिशय उपजे, वाणी गुण पांत्रीश तिम, तीर्थंकरोने नीपजे, ओणो परे नाण कल्याणक, अरिहंतनं भावे स्तवं, धर्मरत्न पसाय पामी, सिद्धिगति मारे जवं...३
निर्वाण (मोक्ष) कल्याणक नु चैत्यवंदन समवसरणमां बेसी जिनवर, देशना देता सदा, भविक जीव उपकार करतां, नाम गोत्र खपे तदा, शुक्ल ध्याननी रढ लागी, शैलेषी करता मुदा, अघाती चउनो क्षय करी, संसारथी थाता जुदा...१ निर्वाण कल्याणक प्रभुनं, विबुध वर जाणे यदा, जगमां बधे अंधकार व्यापे, लोक भय पामे तदा, शाश्वतो आचार जाणी, इन्द्र सहु भेला थता, चिता रचे जिन देह काजे, आनंद दूरे खोवता...२ अग्नि जागे वायु वाजे, घृत मधु तिहां सिंचता, आचारथी दाढादि लेइ, स्वर्गमांहि सिधावता.
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