Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 138
________________ [१३४ ] चैत्यवंदन संग्रह करे प्रमार्जन देहरा तणो, तेहने लाभ अछे सो गुणो, सहस गुणो विलेपन तणो, लाख गुणो फूल माला भणो... १० वर वाजित्रने गीत रसाल, लाभ अनंत कह्योततकाल, इम जाणीने करवी भक्ति, जेहने जेहवी होवे शक्ति... ११ जे नर उठी प्रहरने समे, अरिहंत देवने भावे नमे, ते नर पामे संपत्ति कोड, मानविजय कहे कर जोड... १२ जिन दर्शन पूजन फल नु चैत्यवंदन प्रणमी श्री गुरुराज आज जिन मंदिर केरो, पुण्य भणो करशुं सफल, जिन वचन भलेरो...१... देहरे जावा मन करे, चोथतणुं फल पावे, जिनवर जुहारवा उठतां, छठ पोते आवे...२... जावा मांड्यु जेटले, अठमतणुं फल होय, डगलुं देतां जिन भणी, दशमतणुं फल जोय...३... जाइश्युं जिनवर भणी, मारग चालता, होवे द्वादशतणुं पुन्य, भक्ति मालता... ४... अर्ध पंथ जिनघर तणो, पंदर उपवास, दीठो स्वामि तणो भवन, लहिओ ओक मास... ५... जिनघर पासे आवता, छमासी फल सिद्ध, आव्या जिनघर बारणे, वर्षी तप फल लीध... ६... सो बरस उपवास पुण्य, प्रदक्षिणा देता, सहस वरस उपवास पुण्य, जिन नजरे जोता ... भावे जिनवर जुहारिओ, होवे फल अनंत, तेहथी लहिओ सो गणुं, जो पूजे भगवंत... ८... .७... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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