Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 136
________________ [१३२] चैत्यवंदन संग्रह जिहांथी समकित फरशियुं, तिहां थी गणिए तेह, धीरविमल पंडित तणो, ज्ञानविमल गुणगेह...३... ★ चंद्रप्रभु ना सात- मुनि सुव्रत ना नव केम गण्वा नथी ते विचारणीय छे । १७० जिन वर्ण चैत्यवंदन सोळे जिनवर शामळा, राता त्रीश वखाण, लीला मरकत मणी समा, अडत्रीश गुणखाण...१... पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीश जिनचंद, शंख वर्ण सोहामणो, पचासे सुखकंद...२... सीत्तेर सो जिन वंदिओ, उत्कृष्टा सम काल, अजितनाथ वारे हुआ, वंदु थइ उजमाल... नाम जपता जिन तणं, दुर्गति दूरे जाय, ध्यान ध्याता परमात्मनु, परम महोदय थाय...४... जिनवर नामे जश भलो, सकल मनोरथ सार, शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिवसुख अनुभव अपार...५... जिन ना चारे निक्षेपाना महत्त्व नु चैत्यवंदन निजरूपे जिननायके, द्रव्ये पण तिमहि, नाम थापना भेद थो, प्रगटे जगमांहि...१... अध्यातमथी जोडिये, निक्षेपा चार, तो प्रभु रूप समान भाव, पामे निरधार...२... पावन आतमने करेले, जन्म जरादिक दूर, दर्शन पूजन ध्यानथी, राम लहे सुख पूर...३... जिन महिमा नु चैत्यवंदन चैत्रो पुनमनो अखंड, शशिधर जिम दीपे, अंगारक आदि अनेक, ग्रह गणने जीपे...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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