Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 135
________________ तीर्थ-जिन विशेष [१३१] चउविह देव निकाय कोडि, सेवे जस पास, षड् ऋतु अनुकूल हुवे, समकाल निवास...१० इंद्रिय अर्थ अनुकूलता, दु:शील न भास, सुरकृत अ ओगणीश हुवे, चउतीस मिली खास...११ ज्ञानविमल गुणथी लहे अ, अतिशय गुण नहीं पार, ध्यान धरू ते प्रभु तणुं, ते मुज प्राण आधार...१२ चोवीश जिननां पांच बोल नु चैत्यवंदन सुमतिनाथ अकासणुं, करी संजम लीधो, मल्लि पास जिनराय दोय, अट्ठमशुं परसिद्धो...१... छठ भक्त करी अवर सर्व, लिओ संजमभार, वासुपूज्य करे चोथभक्त, थया ते अणगार...२... वरसांते पारणं करे अ, इक्षरस रिषहेश, परमान्ने बीजे दिने, पारणं अवर जिनेश...३... विनीता नगरीमा लीओ, दीक्षा प्रथम जिणंद, द्वारामतीजे नेमिनाथ, सहेसावन वृन्द...४... शेष तीर्थंकर जन्मभूमि, लिओ संजमभार, अणपरण्या श्री मल्लिनाथ,तेम श्री नेमिकुमार...५... वासुपूज्य पास वीरजी, भूप थया नवि अह, . अवर राज भोगवी थया, ज्ञानविमल गुण गेह...६... श्री चोवीश जिन नी भवगणना नु चैत्यवंदन प्रथम तीर्थंकर तणा हुवा, भव तेर कहिजे, शांति तणा भव बार सार, नव नेम लहिजे...१... दश भव पास जिणंदना, सत्तावीस श्री वीर, शेष तीर्थकर त्रिहुं भवे, पाम्या भव जल तीर...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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