Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 132
________________ [१२८] चैत्यवंदन संग्रह (२) आदिदेव लंछन वषभ, अजित जिन हस्ति मोहे, संभवनाथ ने हय भलो, अभिनंदन हरि सोहे...१ सुमतिनाथने कोंच पक्षी, पद्मप्रभु रक्त कमल, सुपार्श्व जिनने साथीओ, चंद्रप्रभु शशि निर्मल...२ सुविधि जिनेसर मत्स्यनु, शीतल जिन श्रोवत्स, खड्गी जिनवर श्रेयांसने, प्रणमो मन धरी रंग...३ वासुपूज्य महिष नं, विमल जिन सूवर जोय, सींचाणो पक्षी अनंतने, श्री धर्मने वज्र होय...४ शांतिजिन मगलो भलो, श्री कुंथु वळी छाग, नंदावर्त श्री अरप्रभु, श्री मल्ली कुंभ चंग...५ मुनिसुव्रतने काचबोओ, नीलकमल नमिराय, दक्षिणावर्त शंखज जयो, श्री नेमिजिनने पाय...६ पुरुषादाणी पार्श्वप्रभु, लांछन नागनुं सार, वीर जिनेसरने भलं, सिंह कह्यो उदार...७ गर्भकाल ओ सही, सर्व जिनने तुंग, जमणे पगे जंघां तणो, अ आकार उत्तंग...८ लंछन अ सवि शाश्वताओ, आगममांहि जोजो, क्षमाविजय जस नामथी, शुभने जश सुख होजो...६ चोवीश तीर्थकरना आयुष्य नु चैत्यवंदन प्रथम तीर्थकर आउखं, पूर्व चोराशी लाख, बीजा बहोतेर लाख मुं, त्रीजा सायेठ भाख...१... पचाश चालीश त्रीशने, वीश दशने दोय, अक लाख पूर्वतj, दशमा शीतल जोय...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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