Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
View full book text
________________
तीर्थ-जिन विशेष
[१०६]
-
-
-
तिर्यंच पंचेद्रियमांहि देव, करमे हुं आव्यो, करी कुकर्म नरके गयो, तुम दरिशन नहीं पायो...५... ओम अनंतकाले करी, पाम्यो नर अवतार, हवे जगतारक तुं मल्यो, भवजल पार उतार...६... N. B. आमां कर्तानु नाम त्रीजी गाथामा छे तेथी पाछली त्रण गाथा कोइकनी उमेरेली जणाय छे ।
[२] जगन्नाथने हुं नम हाथ जोडी, करू विनती भक्तिशुं मान मोडी कृपानाथ संसारकुं पार तारो,
लह्यो पुण्यथी आज देदार सारो...१... सोहिळा मळे राज्य देवादि भोगो, परम दोहिलो अक तुज भक्ति जोगो, घणा कालथी तुं लह्यो स्वामी मीठो,
प्रभु पारगामी सह दुःख नीटो...२... चिदानंद रूपी परब्रह्म लीला, विलासी विभो त्यक्त कामाग्नि कीला, गुणाधार जोगीश नेता अमायी,
जय त्वं विभो भूतले सुखदायी...३... न दीठी जेणे ताहरी योग मुद्रा, पड्या रात दिवसे महा मोह निद्रा, कीसी तास होशे गति ज्ञान सिंधो,
भमंता भवे हे जगज्जीवबंधो...४...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146