Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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[११६]
चैत्यवंदन संग्रह
त्रण काल त्रिभुवन मांही, करे ते पूजन जेह, दरिशन केरू बीज छे, अहमां नहीं संदेह... १४... ज्ञानविमल प्रभु तेहने, होय सदा सुप्रसन्न,
ही जीवीत फल जाणोजे, तेहिज भविजन धन्न... १५... अतीत चोविशी चैत्यवंदन
(१) उत्सर्पिणी आरे थया, केवल नाणी जिणंदा, निरवाणी सागर प्रभु, महाजस विमल मुणिदा... १... सर्वानुभूति नमुं श्रीधर श्रीदत्त स्वाम, दामोदर नमुं सुतेज जिन, स्वामि मुनिसुव्रत नाम...२... सुमति शिवगति अस्तांगन मी, अनिल यशोधरदेव, कृतारथ ओगणीशमा करो जिनेश्वर सेव...३... शुर्धमति शीवंकरु, स्पंदन संप्रतिनाथ, अतीत चोवीशी वंदतां, श्री शुभवीर सनाथ...४... (२)
,
अतीत चोवीशी प्रथम देव, निर्वाणी सागर महा- जस सर्वानुभूति श्रीधर, सुदत दामोदर सुतेजा, स्वामी सुव्रत सुमति ने, शिवगति सुहेजा...२... अस्ताग नेमिश्वर अनिल, यशोधर कृतार्थजिनेश, शुद्धमति ने शिवंकरी, स्यंदन संप्रति कहेश...३... (३) अतीत चोवीशी वंदिले, आतम शुभ भावे, अरिहंत नामना जापथी, मंगळ माला पावे. १...
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जिन केवलज्ञानी, विमल अभिधानी... १...
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