Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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तीर्थ - जिन विशेष
[ १११] •
तेणी परे आतम भावने ओ, विमल कर्यो जेणे पुर, ते परमातम देवनुं दिन-दिन वधतुं नूर...३... नामे तो जगमा रह्या, स्थापना पण तिमही,
द्रव्ये भवमांहे वसे, पण न कळे किमही ... ४... भाव थकी सवि अकरूप, त्रिभुवन में त्रिकाले, ते परमातम वंदिओ, तिहुं योगे स्वभाले ... ५... पाले पावन गुण थकीओ, योग क्षेमकर जेह, ज्ञानविमल दर्शन करी, पूरण गुण मणि गेह... ६... [ ५ ] मुख निरखी जिनराजजी, भावुं भाव उदार, धन्य दिवस वेला घडी, दीठो तुम देदार...१... अंतरजामी तुं माहरो, समरू वारंवार, तारक बिरुद सुणी करी, मन-मंदिर अकवार...२... सुता बेठा जागतां, अक्रज तमारू ध्यान, योगीश्वर पेरे जपुं, निरखुं परम निधान...३... सुरहि समरे वच्छने, कोयलडी मधु मास, तिम समरू हुं तुजने, चंद्र चकोर उल्लास... ४... जिम घन गर्जित मोरने, उलट अंग थाय, निरखीने हरखे घणुं, मुज मन आवे दाय... ५... अण संभार्या सांभरे, समय-समय सो वार, नयन अमारा लालचं, देखत तुम देदार...६... तुं मन मान्यो माहरे, तुंहिज जीवन प्राण, सेवक करीने दाखवो, तुं मोटो महिराण... ७...
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