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चैत्यवंदन संग्रह
(२०) सुणो आदि जिनराज अरदास मोरी, लही भाग्यथी आज में भेट तोरी, महापुण्य ना पुरथी नाथ पायो,
हवे कष्ट भय दुष्ट दूरे नसायो...१... गयो काळ बाळपणामां अनंतो, वस्यो मोहनी आणमां हुं भमंतो, देखी मुख तारू थयो उजमाल,
लह्यो धर्मनो आज तारूण्यकाल...२... मल्यो चरम आवर्त मोटो सखाइ, पडयो पातळो मोह महा दुःखदायो, ग्रन्थि भेद थी तत्त्वनी दृष्टि पाइ,
प्रभु ओळख्यो तुं अमोही अमायी...३... मिट्यो आज मिथ्यात्वनो अंधकार, थयो शुद्ध सम्यक्त्वनो ज्योतकार, रह्या वेगळा काठिया कर्म काठां,
अनंतानुबंधी सवे दूर नाठां...४... हवे उल्लसी आपथी योग शक्ति, जागी चित्तमां ताहरी जोर भक्ति, गयो आप-आपे सहु भ्रमजाळ,
जाण्यो देव तुं एक जगमां दयाल...५... थयुं समर से चित्त शीतल सुचंग, भळी वासना सहज संवेग रंग, गयो ताप निष्पाप मार्ग निहाळी,
मळी चेतना सहचरी रसाळी...६...
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