Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
View full book text
________________
तीर्थ-जिन विशेष
[८७]
नव चोमासी तप कर्या, त्रण मासी दोय,. दोय-दोय अढीमासी तिम,-दोढ मासी होय...१... बहोंतेर पासखमण कर्यां, मासखमण कर्यों बार, षड् द्विमासी तप वळी, बार अट्ठम तप सार...२... षड्मासी अक तप कर्यो, पंच दिन उणषड् मास, बसोओगणत्रीस छठ भला, दीक्षा दिन अक खास...३... भद्र प्रतिमा दोय भली, महाभद्रे दिन चार, दश दिन सर्वतोभद्रवा, लागठ निरधार...४... विण पाणी तप आदर्यो, पारणादिक जास, द्रव्याहारे पारणा कर्या, त्रणसो ओगणपचास...५... छद्मस्थ अणीपेरे रह्या, सह्या परिषह घोर, शुक्लध्यान अनले करी, बाळयां कर्म कठोर...६... शुक्लध्यान अंते रह्या, पाम्या केवलज्ञान, पद्मविजय कहे प्रणमतां, लहीले नित कल्याण...७...
जय जय श्री जिन वर्धमान, सोवन सम काय, सिंह लंछन सिद्धार्थराव, सुत त्रिशला माय...१... वरस बहोंत्तर आउ देह, कर सत्त प्रमाण, ऋषभादिक सम जास वंश, इक्ष्वाकु सम जाण...२... छट्ठ भत्त संजम लीयो, कुंडलग्राम शुभ ठाम, गणधरे अग्यारे सहित, आव्यो शिवपुर स्वाम...३... चौदह सहस मुनि शिष्य, छत्रीस सहस, श्रमणी श्रावक अक लाख, गुणसट्ठ सहस्स...४...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146