Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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[५२]
चैत्यवंदन संग्रह
बाह्मी सुंदरी जेहनी अ, तनया बहु गुण खाण, ज्ञानविमल गुण तेहना, संभारो सुविहाण...३...
[१०] प्रथम नाथ प्रगट प्रताप, जेह नो जगे राजे, पाप ताप संताप व्याप, जस नामे भांजे...१... परम तत्त्व परमात्म रूप, परमानंद दाइ, परम ज्योति जस झलहले, परम प्रभुता पाइ...२... चिदानंद सुख संपदाओ, विलसे अक्षय सनूर, ऋषभदेव चरणे नमे, श्री ज्ञानविमल गुणसूर...३...
[११] प्रेमे प्रणमो प्रथम देव, शत्रुजय गीरि मंडन, भवियण मन आणंद करण, दुःख दोहग खंडण...१... सुर नर किन्नर नमे, तुज भगतिशुं पाया, पाव पंक फेड समस्थ, प्रभु त्रिभुवन राया...२... ज्ञानविमल प्रभु तुम तणे, चरणे शरणे राखो, करजोडी ने विनवू, मुक्ति मार्ग मुज दाखो...३...
[१२] नाभि नरेसर वंश चंद, मरूदेवा मात, सुर रमणी रमणीय जास, गाये अवदात.. कंचन वर्ण समान कांति, कमनीय शरीर, सुंदर गुण गण पूर्ण भव्य, जन मन तनु कीर...२... आदीश्वर प्रभु प्रणमीये अ, प्रणत सुरासर वृद, मन मोदे मुख देखतां, दान मीटे दुःख दंद...३...
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