Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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तीर्थ - जिन विशेष
(१३)
पूर्णचंद्र उपनाम जास, वदनांमुज दीठे, भव भव संचित पाप ताप, ते सघलां नीठे... १... भविजन नयन चकोर चंद्र, तव हरखित थाय, अंधकार अज्ञान तिम, निर्विषयी
जाय. २...
...
[ ५३ ]
समता शीतलता वधे अ, पूर्ण ज्योति प्रकाश, ऋषभदेव जिन सेवतां, दान अधिक उल्लास ...
..३...
(१४) नाभि नरेसर वंश मलय, गीरिचंदन सोहे, जस परिमलशुं वासियो, त्रिभुवन मन मोहे... १... अपछर रंभा उवर्शी, जेहना अवदात, गाये अहोनिश हर्षशुं, मरूदेवी मात... निरुपाधिक जस तेजशुं ओ, सममय सुखनो गेह, ज्ञानविमल प्रभुता घणी, अखय अनंती जेह... ३. (१५)
...
रीसह जिनवर रीसह जिनवर, अवर त्रेवीश...१... पुंडरगीरि शिर उपरे, नमो नेमि गिरनार, सासय बिंब असासयां, स्वर्ग मृत्यु पाताल...२... अकमना प्रणमो सही, मन समरी नवकार, कर जोडी लक्ष्मण भणे, सफल करो अवतार...३... (१६) विनीता नयरीनो घणी, नाभिराय कुलभाण, मरूदेवा माता जनमियो, त्रिभुवन तिलक समान...१... राणकपुरे वंदु सदा, ऋषभदेव महाराज, कर्म पडल दूरे हरे, सारे वांछित काज...२...
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