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प्रमूत ( पन्चा जन्मा) हो, उन्हे भी तीन दिन तक पूजा नहीं करनी चाहिये । अशुचि की और भी कई बाधाएँ है, वे अपने गुरु आचार्या से पृछकर ध्यान मे रसना व अनुसरण करना चाहिये।
पुष्प चढाने के नियम ( पूजा में काम आने वाले पुप्पो को काटकर-पिरोकर काम में लेने से, कभी-कभी बेइन्द्रिय जीव पुप्यो मे लिपटे रहने से हिंमा की सम्भावना रहती है। अत फग के काटने पीरोने में शास्त्र-विहित विधि से प्राप्त पुप्पो से (चाहे घोडे हो ) पूजा विशेष फलदायक है। अत विवेक एव जयगा रसना अत्यन्त ही आवश्यक है। तथा
मुखकोग बाँधने का तरीका मुखकोश बांधने का यह विधान (नियम है कि आठ पुड बाल बच से मुग्य और नाक दोनों को बाँध कर पूजन में प्रवेश करना चाहिए। पई-पई भाई-बहन केवल मुग्न बाँधते है तथा नाफ युग रखते हैं। फाई-यई तो केवल मुह के आगे नाम मात्र कोही चदर गा लेते है, पुछ लोग पूजन के बाद तुरन्त मुसकोग गोर देने है। एव घोक देते हुए मनु प्रतिमा तक पिना मुनकोश याँधे ही परे जाते है नया एक व्यक्ति तो पिना मुन्वकोश के ही प्रतिगाजी फे मागीप मोहोरर नयन लोगादि गान-पाठ पर
समे मुनाफकोगी हना थालार के छोटे प्रनिमाजी पर गिर जाते है । उमन मशआमानना हो जाती है। इसलिये